अब तक भूल न पायी माँ ( Ma par hindi kavitayen )
(1) पल, घण्टे, दिन, सप्ताह बीते
चलती रही दुनियाँ
यू़्ं कर करके महीनों बीते
फिर भी कहाँ रुकी दुनिया
महीनो करते साल भी बीते
पर भूल न पाई माँ ...
तुमको भूल न पाई माँ
अबतक भूल न पाई माँ..
बचपन बीता गोद मे तेरे
लाड़ प्यार संग झिड़की मीठी
दी संस्कारों की तब शिक्षा
जब मै थोड़ी हुई बड़ी
हर इच्छा मेरी,खुशी तुम्हारी
कभी न कहती ना
तुमको भूल न पाई माँ
अबतक भूल न पाई माँ
जब मुश्किल मे मैं घिर आई
आँखें तुम्हारी तब भर आई
देवी देवता पाठ मनौती
तुमने कभी भी ना बिसराई
अब जाना हममे ही अटकी
होती थी तेरी जाँ
तुमको भूल न पाई माँ
अबतक भूल न पाई माँ
बुरी लगती थी टोक तुम्हारी
बिना बात नोक झोंक तुम्हारी
खुद को नवीन युग का कहती
बातें तुम्हारी जाहिल सी लगती
अब जाना तुम कितनी सही थी
जब बनी बिटिया की माँ
तुमको भूल न पाई माँ
अबतक भूल न पाई माँ
अब भी मै बच्ची हूँ मम्मा
अक्ल की कुछ कच्ची हूँ मम्मा
दुनियादारी नही है आती
तुम होती तो ये समझाती
तुम होती तो यह कह जाती
तुम होती तो वह बतलाती
जीवन मौत का कैसा ये क्रम
कहाँ चली गई माँ
तुमको भूल न पाई माँ
अबतक भूल न पाई माँ.
(2) ताज्जुब है..जाने कैसे ,उस घर-आंगन को भूल गई ,
जहां गुजारे इतने सावन ,उस प्रांगन को भूल गई..अपने धुन मे रही मस्त ,वो बीते दिनो की बात हुई ,
समझ न पाई हुई व्यस्त ,कब दिन बीता कब रात हुई..बडे दिनो के बाद ,एक हुक-सी दिल मे उठ आई हैकोशिश लाख किया पर जाने, आंखे क्यूं भर आई है....
©शालिनी खन्ना
Ma par hindi kavitayen

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