जिंदगी का सफर (zindagi ek safar hai)
आ गया अवसान जीवन का मनुज सुन
त्याग कर दुनिया चलो नूतन सफर को
है धरा रह जायेगा, जो धन कमाया
आचरण ही जायेगा सँग उस डगर को
छोड़ दे अब मोह किसका कर रहा तू
जेब ना होती कफन में सुन पियारे
रात दिन खटता रहा, एक पल रुका ना
चल चला चौसठ घड़ी आठो पहर को
साथ यौवन के तुम्हारे पाप आया
झूठ सच, व्यभिचार सारे साथ लाया
वेदना में क्यूँ पड़ा जीवन गँवाकर
छोड़कर पीयूष अपनाया जहर को
ईश ने अग्रज बना भेजा जहाँ में
भार अवरज का किया तेरे हवाले
स्वार्थवश भू के किये हिस्से तुम्ही ने
प्यार सागर छोड़, पाया धन नहर को
थी जरुरत जन्मदाता को तुम्हारी
आश्रमो में काटते दिन बेबसी के
आस में पथरा गई थी चार आँखे
कौन सी है अब सजा इस बेखबर को
आ गया अवसान जीवन का मनुज सुन
त्याग कर दुनिया चलो नूतन सफर को
©शालिनी खन्ना
जिंदगी या जीवन से संबंधित अन्य कवितायें भी आपको अच्छी लगेंगी....
पढ़ने के लिए लिंक

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें