गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

चल रही है ज़िन्दगी....

 

                                          चलती का नाम ज़िन्दगी   (zindagi yahi reet hai)


zindagi yahi reet hai


  चल रही है ज़िन्दगी, अब क्या करे

     दर्द  के  मारे  बिचारे  क्या  करे ।।


रौनकें आयी थी खुशियों सँग कभी
सह मधु पतझड़ भी आता क्या करें।।


हाथ थामे जो चला वादे लिए
छोड़कर वह साथ जाता क्या करें।।


मौत ही जीवन की तो पूरक रही
पर कहाँ मन मान पाता, क्या करें।।


आ रहा मुश्किल भरा इक दौर भी
पर कोई कब जान पाता, क्या करें।।


वेदना औ हर्ष से है जग भरा
कोइ रोता कोइ गाता, क्या करें।।

©शालिनी खन्ना 
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रविवार, 4 फ़रवरी 2024

चाहे रख ले जैसे, अब तेरे हवाले हैँ।।


प्रभु हम पे कृपा करना  (prabhu hum pe kripa karna )

prabhu hum pe kripa karna


जो खेल रचे तूने, प्रभु सबसे निराले हैँ
चाहे रख ले जैसे, अब तेरे हवाले हैँ।।


जब भी दिल से चाहा, आवाज तू सुन लेता
तेरे दम से ही तो, मंदिर व शिवाले हैँ।।


है देकर खुशियो को, पल मे दुख भी देता
जीवन में अंधेरा भी, तुमसे ही उजाले हैँ ।।


है राह भटकते को, रस्ता दिखलाया है
जब - जब हम बिखरे हैं, तूने ही संभाले हैँ ।।


देता पल में जो तू, तो छिन भी लेता है
दानों पर लिख डाला, किस-किस के निवाले हैं।।


है पार करे नैया, मँझधार मे जो डूबी
मुख से जिसने प्यारे, हरि नाम निकाले हैँ।।
©शालिनी खन्ना
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शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

दोहे ....


दोहा (doha kaun sa chhand hai )

doha kaun sa chhand hai


दोहा अर्द्ध सममात्रिक छंद है| यह दो पंक्तियों एवं चार चरण का होता है| इसके विषम चरणों में १३-१३ मात्राएँ होती हैं तथा सम चरणों में ११-११ मात्राएँ होती हैं...


मेरे 10 दोहे -

1.
पूस माघ आया लिए, ठंढे दिन औ रात।
सर्द हवा सर सर बही , सिहर रहे हैँ गात।।

2.
वक्त वक्त की बात है, पल निशा कभी भोर।
झुलसाती देह धूप जो, आज पड़ी कमजोर।।

3.
सबक सैकड़ो दे गया, बुरा चला वह चाल।
खुशियां लेकर आ रहा, फिर से नूतन साल।।

4.
रविकर को नित नमन कर, है जीवन आधार।
कर्म सदा करते चलो, हो ऊर्जा संचार।।

5.
राम हुए आदर्श जब, इनसे बड़ा न कोय।
दीन हीन तर जाएंगे, अब काहे को रोय।।

6.
दिवस सुनहरा है खड़ा, तम भागा उस पार।
विरह मिलन सुख दुख सभी , हैँ जीवन के सार।।

7.
जो लिख जाऊँ मैं कभी ,पोथी होगी गौण ।
एक नाम है राम का ,जो गर्मी में पौन ।।

8.
रात बड़ी सुनसान जब, नींद अघाती जाय।
समझो पहुंची चरम पर, शीत बताती जाय।।

9.
देह अकड़ती जात है, जब भी बढ़ती ठण्ड।
तन व मन दोनो अकड़े, जब भी बढ़े घमण्ड।।

10.
गरम रजाई मे घुसे, देते रहते ज्ञान।
सिकुड़ रहे जो शीत से, इनका कहीं न मान।।

©शालिनी खन्ना

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saraswati mata aarti pdf

सरस्वती वंदना ( saraswati mata aarti pdf )   माँ सरस्वती वरदायिनी, मै नित करूँ आराधना यूँ लेखनी चलती रहे, करती हूँ तुमसे प्रार्थना दे शब्द ...